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लिए चलता हूं ।

भले क़िस्मत में अपनी हार लिए चलता हूंँ।
मगर मैं दिल में खुशी प्यार लिए चलता हूंँ।

गुलों पे बैठना फितरत है सभी भौरें की
मैं आब़–ए–इश्क़ हूंँ, गुलज़ार लिए चलता हूंँ।

मैंने समझा है जिम्मेदारी एक आदम की
वारिस–ए–हिंद हूंँ संसार लिए चलता   हूंँ।

शौक़–ए–कुर्ब़त है मुझे उस ही खुद से केवल
जिससे मैं जिंदगी उधार लिए चलता हूंँ।

मुझको बेशक न समझ पाए ये अहल–ए–दुनियांँ
मैं सबके वास्ते  इतवार   लिए  चलता हूंँ।

विसाल–ए–यार की ख़्वाहिश नहीं मुझे क्योंकि
जिगर में ही जो  ख़्यालगार  लिए चलता  हूंँ।
 
खुद की ईंधन के सरीख़े न कीमतें करना।
अपनी आंँखों में  मैं अंगार  लिए  चलता हूंँ।

दीपक झा रुद्रा

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8 Comments

Gunjan Kamal

05-Oct-2022 07:42 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Pratikhya Priyadarshini

05-Oct-2022 01:23 AM

Bahut khoob 💐

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Palak chopra

05-Oct-2022 12:23 AM

Nice 🌺🙏💐

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